Mahrshi Patanjali

Maharshi Patanjali

आजकल सभी के लिए महर्षि पतंजलि का नाम नया नहीं है। योग की समझ रखने वाले साधकों के लिए तो महर्षि पतंजलि के नाम का एक अलग स्थान है। जो योग की समझ नहीं रखते हैं उनके लिए भी है भारत में यह जाना पहचाना नाम है। जिन्होंने योग के अतिरिक्त कहीं और यह नाम सुना है उनको मैं बता देना चाहता हूं कि पतंजलि योग के क्षेत्र में एक बहुत बड़ा नाम है। आज का लेख महर्षि पतंजलि को समर्पित है, इस देश का दुर्भाग्य है कि, लोगों इनके बारे नहीं पता। आशा करता हूं, जो लोग जो महर्षि पतंजलि को किसी दवाई, वस्तु या संस्था की व्यापारिक छाप (ब्रांड) समझते हैं, उनके जीवन के बारे में जान पाएंगे।

वेदों, स्मृति, उपनिषद, आदि शास्त्रों में जो योग के सूत्र बिखरे हुए मिलते हैं। उनको माला में मोती की तरह पर पिरोकर योग को दर्शन के रूप में सर्वश्रेष्ठ कृति प्रदान करने का श्रेय महर्षि पतंजलि को जाता है। योग के क्षेत्र में रहकर योग-सूत्र (दर्शन) को जिस साधक ने नहीं पढा़ या कहूं कि आत्मसाध नहीं किया, उस साधक का योग का ज्ञान अधूरा है। योग के क्षेत्र में विश्व में यह सबसे अधिक अनुवाद, भाष्य, टीका, टिप्पणी, आदि की जाने वाली पुस्तक है। 40 से अधिक भाषाओं में इसका अनुवाद हो चुका है, लोग इसे राजयोग तथा अष्टांग योग के नाम से भी जानते हैं। अधिकतर विद्वानों का मानना है कि महर्षि पतंजलि का जीवनकाल 200 से 300 ईसा पूर्व रहा है। इनको महात्मा बुध के बाद माना जाता है और कई योग सूत्र पर योग बौद्ध धर्म की छाप का आक्षेप लगाते हैं। यही नहीं बहुत से विद्वान योगसूत्र पर भाष्य करने वाले व्यास को महर्षि वेदव्यास से अलग मानते हैं। महर्षि पतंजलि के बारे में शास्त्रों को देखें और कुछ बातों पर ध्यान दें तो हम पाते हैं, कि महर्षि पतंजलि योग सूत्र का प्रतिपादन महाभारत काल से पहले किया हुआ था। योगसूत्र पर भाष्य भी वेदव्यास द्वारा ही लिखा गया है, यही कारण है कि पुराणों में भी सांख्य और योग दर्शन की छाप मिलती है। श्रीमद् भागवत महापुराण में भी वेदव्यास जी द्वारा महर्षि पतंजलि का नाम का एक जगह वर्णन आता है। महाभारत में भी एक स्थान पर महर्षि पतंजलि के नाम का उल्लेख हुआ है। कहीं-कहीं शास्त्रों में महर्षि पतंजलि को शेषनाग तथा महर्षि कपिल को (जो सांख्य योग के प्रणेता है) भगवान विष्णु का अवतार माना गया है। तात्पर्य यह है कि सांख्य के बाद ही योग दर्शन लिखा गया है। यदि यह माना जाए कि 200 300 ईसा पूर्व इनका का जीवनकाल है, तो इस काल से पहले महात्मा बुद्ध, गुप्तवंश, नंदवंश, बाद के शंकराचार्य, पाणिनि, आदि के जीवन का इतिहास मिलता है। तो ऐसा क्यों है, कि जो योग दर्शन इतना व्याख्यात था उसके रचयिता महर्षि पतंजलि गुमनाम रहे। केवल उनका ही जीवन चरित्र नहीं मिलता। तमिलनाडु के रामेश्वरम मंदिर के बारे में कहा जाता है कि भगवान राम ने वहां शिवलिंग का निर्माण किया था। आप देखें तो वहां आपको महर्षि पतंजलि की मूर्ति मिलती है, यदि उसकी रेडियोलॉजी द्वारा उस पत्थर की उम्र देखें तो शायद कोई प्रमाण मिले। तमिलनाडु के ही महाबलीपुरम तथा तिरूपत्तूर आदि में महर्षि पतंजलि का पत्थर पर चित्र तथा मंदिर मिलता है। इसलिए यदि शोध करें तो संभव है कि इन महान योगी के गुमनाम जीवन काल को सही-सही ज्ञात किया जा सकता है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *